14. मन

” मन “   तंरगित चेतना का नाम ही मन है ।   हमारी चेतना पर विचारों का   जो तंरग है ,उस अवस्था को ही “मन”   कहते हैं ।   “मन” और  “शरीर ” में     कोई मौलिक भेद नही होता ।  ‌‌ ”  मन”  सुक्ष्म  “शरीर ” ‌है तो  “शरीर “   … Read more

13. जीवन संग्राम नही जागरण है ।

जीवन संग्राम नही , यह यज्ञ है “जागरण “का । जहाँ हम अपने विचारों  , वृतियों  और अपनी कमज़ोरीयों  पर  पैनी  नजर रखते हैं । अपनी दृष्टि से अपने लक्ष्य को कभी ओझल नही होने देते । हमारे जीवन में बहुत से भटकाव  आते है ं ,जहाँ अपने को स्थीर और दृढ़ रखना भी एक तपस्या … Read more

12. जिन्दगी की चुनौतियां वाह्य नही आन्तरिक हैंI

 एक व्यक्ति  अपनी जिन्दगी की बडी़ जंग  तो बाद में लड़ता है ।  पहले अपनी छोटी छोटी   कमजोरियो ं से उपर उठकर  अपनी हौसले का विस्तार करता है ।  अपने संकल्प को एक आकार देने की  कोशिश करता है ।  अपने आन्तरिक संर्घष को  विवेक से जोड़ता है और अपनी  कमजोरियो ं को कामयाबी में बदलने  की … Read more

11.हमारे सारे दुःख अपने ही विचारों की देन है I

दुःख और दर्द   कहाँ नहीं  है ?  किसे नही है ?  कौन इससे मुक्त है ?  दुनिया की हम बात छोड़ दे ,  भगवान बुद्ध  को भी  इस पिड़ा और संताप से  गुजरना पडा़  था ।  उनहोने माना कि जीवन  यदि है तो सुख – दुःख ,  जीवन मरण रहेगे ।  ज्ञान प्राप्ति के बाद  … Read more

10. शिव बनने के लिए ” विष – पान” करना होगा I

 तू अकेला अवश्य है   पर अनाथ नही है ।  तू  अनभिज्ञ  है  पर अनजान नहीं है।  तू नादान हो सकता है ,पर  ना -समझ नही हो सकता ।  तू  एक योद्धा है,  संर्घष और संग्राम तेरी नियति है।  सफलता और अ -सफलता जीवन में  आएगी और जाएगी पर  बिना पराक्रम के कभी पराजय  स्वीकार मत … Read more

9. “कर्ता केवल एक है “

 तू अपने  को कुछ होने का ,   या    कुछ हासिल कर लेने का गुरूर   मत पाल लेना ,क्योंकि इस ब्राह्मण्ड़   में  “कर्ता” (Doer)    केवल एक है । उसी के बदौलत पूरी क़ायनात रौशन है । सूर्य ,चाँद और तारे उसी के नूर से प्रकाशमान हैं । शबनम की हर बूँद … Read more

8. “आत्म साक्षात्कार”

“आत्म साक्षात्कार “      की पहली शर्त है कि      हम कितने “चैतन्य” हैं ?      हम कितने होश में है ं ?       हमे ं       इस तरह जीना है कि       हम पर जरा भी राँख इकट्ठी न हो ,       हमारे भीतर की … Read more

7. अंतस की क्रान्ति

” अंतस की क्रान्ति ” का संबध    ” आचरण” से नही ं    ” चित्त ” के बदलाव से है ।      चित्त के बदलाव के बिना      आचरण का सुधार एक       पाख्ण्ड बन के रह जाता है ।       यदि       हमारे केन्द्र पर प्रेम … Read more

6. “दान”

“दान”  आध्यात्मिक जगत का   मुख्य  द्वारा है ।   धर्म का मुख्य आभूषण है । ” दान”. में सभी कुछ न्यौछावर करने   का अपूर्व  साहस  होता है ।  ” दानी ” यदि कर्ण  हो ,तो ”  दान” का महिमा शिखर पर होती है ।   “दानी” के हृदय में    कृपणता  का क्षुद्र  … Read more

5. अध्यात्म

“अध्यात्म”  किसी भी समाज के सरोकार में ,  उसके चिन्तन – मनन में ,  उसके आचार ‌- व्यावहार मे ं  तब प्रवेश करता है ,  जब वह समाज अपने पेट की जंंग  जीत चुका होता है ।  इतिहास  गवाह है कि ऐश्वर्य में ही कोई समाज  या राष्ट्र ईशवर – चिन्तन के प्रति ज्यादा  संवेदनशील होता है … Read more