55. रोमन्स के जादूगर और उनकी तन्हा जिन्दगी

आखिर ऐसा क्यों होता है कि रोमान्स के जादूगर कहे जाने वाले नामचीन शायर और गीतकार , जिन्होने अपने गीतों और शायरी में ईश्क और मोहब्बत कई रंग  दिखाऐ हैं ,फिर उनकी जिन्दगी ईतना तन्हा , बेरंग  और  विरान क्यों रह जाती है ? ये अपने निजी जीवन में रोमान्स के गुल क्यों नहीं खिला … Read more

54. ” नाकाम ” होने का ड़र

” जिन्दगी “    छोटी   छोटी   जरूरतों  और    जुगनू की तरह चमकते  हसरतों     की एक लम्बी  सिलसिला भर है या     कुछ और भी है ?     मेरी जिन्दगी में  कठिनाईया रही हैं ,     पर कष्ट जैसी कोई बात नही है ।     अन्न और आश्रय का … Read more

53. जिन्दगी ” हादसा ” नही उपहार है

शिकायत “ज़िन्दगी ”  से नहीं , ‌‌‌   खुद से है । मैने ही “ज़िन्दगी”  को समझने में और उसे संवारने में भूल कर दि । पुरी “ज़िन्दगी” मैं  केवल भीड़ का हिस्सा बना रहा , जिसका न अपना कोई चेहरा था , न कोई विचार । नाकाम होने का ग़म  मुझे उतना नहीं , जितना … Read more

52. “सत्य”

“सत्य”  की अभिव्यक्ति के लिये  ” असत्य” के पास कोई जबान नही होती , क्योंकि उसके लिए करूणावान हृदय और प्रज्ञावान दृष्टि होनी चाहिये , जो असत्य के पास नही होता  । इसलिए ही “असत्य की जबान “ हमेशा लडखडा जाती है । कभी वह गीडगीडाता है तो कभी गुर्राता है । “सत्य” नग्न है … Read more

51. बड़ा बनने की छटपटाहट

कहीं हम “बडे़ ” बनने की कोशिश में  “छोटे ” तो नही होते जा रहे हैं ? आज के दौर में सबसे मुशिकल और चुनौतिपूण काम है , ” एक नेक और ईमानदार इसांन बने रहना “ आज ” बड़ा” बनना आसान है , पर सहज और सरल बने रहना बहुत मुशिकल है । छल … Read more

50. “अहंकार”

इस संसार में जो सबसे बड़ा अनर्थ है , असत्य है ‌, और झूठ है , वह है “अहंकार”  । पुरी मानव जाति को  जीतना दु:ख और संताप  इस “अहंकार” ने दिया है , उतना तो उसके दुश्मनों ने भी नही दिया होगा । वास्तव में अज्ञान का विस्तार ही “अहंकार”  है । जिसके पास जीवन … Read more

49. हाथ को काम

आज “हाथों ” को काम    का मिलना ही उसका सम्मान और     सत्कार है ,और काम का नही मिलना     एक बद्दुआ है ।     एक गाली है ।     जब तक आपके पास काम      नही होगे ,     आपकी प्रतिभा और प्रयत्न ,     आपके … Read more

47. काम और मोक्ष

” काम ” और  “मोक्ष

जीवन के दो महान

   लक्ष्य है ं ।

  ” अर्थ ” और ‌”धर्म” 

   दो साधन हैं ।

  ” अर्थ ” का  सिधा सम्बन्ध  धन से है ,

   जो  “काम ” का साधन है ।

  इसलिए जो युग जितना कामूक

  होगा ,वह उतना ही 

  धन पिपासु होगा ।

  जो युग  “मोक्ष” की आकांक्षा  रखेगा

  वह उतना ही आध्यात्मिक  होगा ।

  महत्वपूर्ण बात यह है कि

 ” धर्म ”  भी “धन ” की तरह एक साधन है ।

  जब “मोक्ष” पाना होता है तो  “धर्म”

  साधन बन जाता है ।

  यदि  “काम – तृप्ति ” की प्यास हो तो

  “धन” साधन बन जाता है ।