5. अध्यात्म

“अध्यात्म”  किसी भी समाज के सरोकार में ,  उसके चिन्तन – मनन में ,  उसके आचार ‌- व्यावहार मे ं  तब प्रवेश करता है ,  जब वह समाज अपने पेट की जंंग  जीत चुका होता है ।  इतिहास  गवाह है कि ऐश्वर्य में ही कोई समाज  या राष्ट्र ईशवर – चिन्तन के प्रति ज्यादा  संवेदनशील होता है … Read more

4. धर्म

“धर्म”  कोई मजहब ,  कोई पंथ ,कोई सम्प्रदाय नही ं है ।  यह तो हमारे आध्यात्मिक जीवन का शिखर है ।  क्षितिज के  पार  की एक दिव्य पुकार है ।  “धर्म ” का संबंध  आस्था से नही हमारे   अस्तित्व से है ।   यह सत्य से ज्यादा  स्वयं की खोज है ।  ‌ ” धर्म … Read more

3. वासना

” वासना  “               को लेकर हमारी धारणा              सदा से ही अधार्मिक ,अवैज्ञानिक , और              निषेधात्मक रही है ।              सच्चाई यह है कि “वासना ” हमारी           … Read more

2. भक्ति

 “भक्ति “        कोई पुजा का विधान नही और         न  ही कोई  कर्मकांड है ।         यह तो एक आन्तरिक प्रकिया है ,         जो निरन्तर चलती रहनी चाहिए ।        ‌ ‌ज्ञानी जहाँ          अपनी ज्ञान की तलवार … Read more