अध्यात्म
13. जीवन संग्राम नही जागरण है ।
जीवन संग्राम नही , यह यज्ञ है “जागरण “का । जहाँ हम अपने विचारों , वृतियों और अपनी कमज़ोरीयों पर पैनी नजर रखते हैं । अपनी दृष्टि से अपने लक्ष्य को कभी ओझल नही होने देते । हमारे जीवन में बहुत से भटकाव आते है ं ,जहाँ अपने को स्थीर और दृढ़ रखना भी एक तपस्या … Read more
12. जिन्दगी की चुनौतियां वाह्य नही आन्तरिक हैंI
एक व्यक्ति अपनी जिन्दगी की बडी़ जंग तो बाद में लड़ता है । पहले अपनी छोटी छोटी कमजोरियो ं से उपर उठकर अपनी हौसले का विस्तार करता है । अपने संकल्प को एक आकार देने की कोशिश करता है । अपने आन्तरिक संर्घष को विवेक से जोड़ता है और अपनी कमजोरियो ं को कामयाबी में बदलने की … Read more
11.हमारे सारे दुःख अपने ही विचारों की देन है I
दुःख और दर्द कहाँ नहीं है ? किसे नही है ? कौन इससे मुक्त है ? दुनिया की हम बात छोड़ दे , भगवान बुद्ध को भी इस पिड़ा और संताप से गुजरना पडा़ था । उनहोने माना कि जीवन यदि है तो सुख – दुःख , जीवन मरण रहेगे । ज्ञान प्राप्ति के बाद … Read more
10. शिव बनने के लिए ” विष – पान” करना होगा I
तू अकेला अवश्य है पर अनाथ नही है । तू अनभिज्ञ है पर अनजान नहीं है। तू नादान हो सकता है ,पर ना -समझ नही हो सकता । तू एक योद्धा है, संर्घष और संग्राम तेरी नियति है। सफलता और अ -सफलता जीवन में आएगी और जाएगी पर बिना पराक्रम के कभी पराजय स्वीकार मत … Read more
9. “कर्ता केवल एक है “
तू अपने को कुछ होने का , या कुछ हासिल कर लेने का गुरूर मत पाल लेना ,क्योंकि इस ब्राह्मण्ड़ में “कर्ता” (Doer) केवल एक है । उसी के बदौलत पूरी क़ायनात रौशन है । सूर्य ,चाँद और तारे उसी के नूर से प्रकाशमान हैं । शबनम की हर बूँद … Read more
8. “आत्म साक्षात्कार”
“आत्म साक्षात्कार “ की पहली शर्त है कि हम कितने “चैतन्य” हैं ? हम कितने होश में है ं ? हमे ं इस तरह जीना है कि हम पर जरा भी राँख इकट्ठी न हो , हमारे भीतर की … Read more
7. अंतस की क्रान्ति
” अंतस की क्रान्ति ” का संबध ” आचरण” से नही ं ” चित्त ” के बदलाव से है । चित्त के बदलाव के बिना आचरण का सुधार एक पाख्ण्ड बन के रह जाता है । यदि हमारे केन्द्र पर प्रेम … Read more