15. जिंदगी और भटकाव

तुम्हारी जिंदगी में यदि अब तक भटकाव है ,

तो इसके कारण क्या हैं ?

एक बार खुद से सवाल तो कर ।

तेरे हर सवाल का जबाब तेरे जिंदगी के पास है ।

तू  पहले अपनी “प्राथमिकता ” तो तय कर ।

जीवन में  यदि लक्ष्य ही सुनिश्चित न हो तो

जिंदगी मे भटकाव लाजमी है ।

तुझे जाना कहाँ है ?

पहले ये तो तय कर ।

मंजिल पर पहुँचने का ” रोड मैप “

जिंदगी खुद तैयार कर लेती है ।

जिंदगी के पाठशाला में पहला अध्याय

“प्राथमिकता ” का ही होता है ।

दूसरा अध्याय “संर्घष ” का और तीसरा

” जुनून” का और अन्तिम “सफलता “

का अध्याय जिंदगी खुद से ही लिख लेती है ।

जिंदगी किसी को भी खैरात में नही मिलती ,

कठिन और कठोर संर्घष के बाद ही

तू इस लोक में आ पाया है ।

तुझे इस अवसर  का महत्व समझना होगा 

और इसका जबाब तुझे अपनी कोशिश से नही,

यही तेरी जबाबदेही और जमाने को तेरा जबाब होगा ।

बल्कि कामयाबी से देनी होगी।

तेरा संर्घष और तेरी लडाई 

जमाने से नही ,खुद से है ।

हम खुद अपनी जय और पराजय के लिए

जिम्मेदार है ।

अपने स्वर्ग और नरक का भी हम खुद

हकदार और गुनाहगार हैं और रहेगे ।

यहाँ आना – जाना , मरना – जीना लगा रहेगा ,

तू अपनी नजर अपने लक्ष्य पर स्थिर रख ,

हर उस सुख से तू अपने को दूर रख ,

जो तुझे तेरी मंजिल  से दूर ले जाती है ।

यही तेरी जीवन की तपस्या होगी ।

जिंदगी को

जुल्फ के घने साए में नही ,बल्कि दिन के कडी

धूप मे तपने और सवरने देना होगा ।

कठोर अनुशासन मे ही जिंदगी अपने आत्म विश्वास 

के शिखर पर होती है ।

फिर कामयाबी का पता ढूँढनी नही पडती

जिंदगी खुद ब खुद ढूँढ लेती है ।

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