11. एक संवाद: जिंदगी और मौत के बीच

एक रात सपने में

जिंदगी की “मौत” से मुलाक़ात हो गयी !

‘मौत’ ने  पूछा ?

कैसी हो जिंदगी ? इतनी चहचहा क्यो रही हो ?

“जिंदगी” ने इठलाती हुई  जबाब दिया –

आज मै बहुत खुश हूँ क्योंकि 

आज मेरे पास सब कुछ है 

पैसा और दौलत है ,

शोहरत  और  महफिल है ,

गाडी और बंगला है ,

हुस्न और इस्क है ।

तुम्हे क्या चाहिए बता ?

” मौत ” ने  व्यंग मे ं कहा –

तेरे पास सब कुछ होते हुऐ भी,

मुझे देने के लिये तेरे पास कुछ भी नही है ।

तू ये बता जिंदगी—

मेरे साथ चलते वक्त ,तेरे पास क्या होगा ?

“जिंदगी ” सोच में पड गयी –

जिंदगी इस सवाल के लिये तैयार नही थी ।

फिर जिंदगी काफी सोचने के बाद ,

“मौत ” से हकलाते हुए पूछा –

अब ऐसा क्या अर्जित करु ,जो तुम्हारे साथ

चलते वक्त उपहार स्वरुप तुम्हे दे सकू ?

“मौत ” ने कहा –

इसका जबाब तो तुम्हे ही ढूढना पडेगा जिंदगी ।

कफी दिनों बाद ,

जिंदगी के दरवाजे पर एक बार फिर

“मौत ”  ने दस्तक दी –जिंदगी के पास कोई 

जबाब नही था ।

जिंदगी आज भी  निरुतर है ।

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