9. हमारे निर्णय और हमारे नर्क

आखिर क्यों और कैसे , ” कर्ण”

जैसा योद्धा और  दानवीर

केवल प्रतिशोध  और अपमान के कारण 

“अधर्म ” और “अन्याय ” के पक्ष में खडा

हो जाता है ?

वास्तव में 

प्रतिशोध और अपमान में लिया गया फैसला,

कभी भी  न्यायसंगत और न्याय प्रिय  नहीं हो सकता ।

क्योंकि  निर्णय तथ्यों के आधार  पर नही ,

प्रतिशोध के आधार पर लिया गया था ।

वह कसूरवार है या बे-कसूर,

कहना मुश्किल होगा ।

परिस्थितिया “कर्ण ” को जिंदगी के जिस मोड पर

खडा कर देती है ,वह अधर्म और अन्याय का मंच था ,

जहाँ  सत्य और न्याय के लिये कोई गुंजाइस नहीं थी ।

दानवीर कर्ण हो या फिर गंगा पुत्र ” भिष्म “

सब की अपनी अपनी मजबूरीया रही होगी ,

कोई ऐसे बेवफा नही हो जाता ,

परन्तु जब  आपका उदे्श्य और आदर्श

महान हो, तो व्यक्तिगत मजबूरियों का कोई अर्थ नहीं

होता ।

वासुदेव “कृष्ण ” महाभारत के नायक इसलिए है 

कि वे  सत्ता और सिंहासन के लिये नही ,बल्कि

धर्म और न्याय के लिये पान्डवो के पक्ष में खडे थे ।

वही कर्ण  और भिष्म पितामह 

जैसे महान योद्धा अपने आत्मघातीक निर्णय

के कारण अधर्म के दरबार में विराजमान थे ।

यह नियति का खेल था या फिर अपनी  मजबूरियों 

और कमजोरियो का परिणाम ,अब यह

इतिहास तय करेगा ।

कर्ण जैसा योद्धा और पितामह भीष्म जैसा तपस्वी

कभी कमजोर और विवेकहीन नही हो सकता ,परन्तु

अपनी अपनी विवसता में लिया गया फैसला ही उनके अन्त का कारण बनता है ।

भरी सभा में द्रौपदी के चिर हरण के वक्त पितामह

के “मौन “को इतिहास कभी  माफ नही करेगा ।

यह जिंदगी की स्वतंत्रता और खुबसूरती है और अभिशाप भी ,

जिसमें हम अपने निर्णय और चुनाव के लिए खुद जिम्मेदार और कसूरवार होते हैं कोई दुसरा नही ।

यह सर्वमान्य सत्य है  कि हमारे निर्णय और चुनाव ही

यह सुनिश्चित करते है कि हमारे जिंदगी के हिस्से में स्वर्ग होगा या नर्क ।

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