एक नायक का अधिनायकवाद

जिन्होंने देश के लिये

कुर्बानीयाँ दी ,जेल गये ,

लाठियां और गोलियां खायी ,सूली पर चढे़ ।

अपना तन मन धन  सब कुछ न्यौछावर कर दिये ।

वे सब चुपचाप  विदा हो गये । 

अब ये खादी के

महंगे वस्त्र पहनकर 

देशवासियो ं से कर्ज वसूलने आ गये हैं ।

जिनकी आजादी की लडा़ई में

कहीं पदचिन्ह नही ं दिखे ,वे

आज हमारे पालनहार हैं ।

आज जो देश की स्थिति है ,

नि : सन्देह चिन्ताजनक है ।

देश की महान विरासत आज

बडे़ ही मुश्किल दौर में है ।

हमारे लोकतंत्र की वह विरासत रही है ‌,

कि कांग्रेस की सरकार में  “डॉक्टर श्यामा प्रसाद

मुखर्जी ” जो  ” भारतीय जन संघ ” के संस्थापक थे ,

 नेहरु जी के केबिनेट में मंत्री थे ।

“बाबा साहब आम्बेडकर ” जो नेहरु जी के और कांग्रेस

के कट्टर आलोचक थे‌,वह भी नेहरु जी के केबिनेट में मंत्री थे ।

आज उसकी हम कल्पना भी नही कर सकते ।

उस विरासत को अवश्य ही डेन्ट  लगा है ।

अक्सर एक नायक

जब देश पर  तानाशाही थोपने की कोशिश

करता है , तो सर्वप्रथम लोकतंत्र के लिबास में

और लोकतंत्र की भाषा में अपनी बात की

शुरुआत करता है ।वह आवाम को यह समझाने

की कोशिश करता है कि देश और आवाम के

खुशहाली के लिए उसे कुछ कठोर निर्णय लेने

पड़ रहे हैं ।

उसे अपने विरोध से सख्त नफरत  होती है । यह

हर तानाशाह की फितरत होती है ।वह इसे  अपने खिलाफ एक साज़िश समझता है ।

इसलिए वह हर विरोध को  “राष्ट्रद्रोह ” समझता है ।

हर मतभेद को “बगावत” की संज्ञा देता है ।

इस तरह धिरे धिरे सारी लोकतान्त्रिक संस्थाए 

अपनी मर्यादा खोती चली जाती है ं।

राजनितिक विरोधियों को शलाखों के पिछे डा़लने

की कोशिश जारी रहती है । इस तरह लोकतंत्र का क्षरण

जारी रहता है ।

एक सिमा के बाद जब पानी

नाक से उपर बहने लगता है तो देश

कि जनता चुपचाप चुनाव की प्रतिक्षा करती रहती है ।

चुनाव में बडे़ ही शान्तिपूर्वक आवाम लम्बी लम्बी कतारों

में बदलाव के लिए , अपना मतदान देकर एक नऐ जनादेश द्वारा अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा करती

है और लोकतंत्र को पुनः स्थापित करती है ।यही हमारे

देश के लोकतंत्र की खुबसूरती और ताकत भी है ।

लोकतंत्र ही हमारे संविधान की आत्मा है  और उसे

किसी को कलंकित करने का अधिकार नही है ।

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