60. “माँ ” अलविदा

रात के

सर्द – उदास और गमगीन ,

धूंध से भरे नीम अन्धेरे में

साँसो  की गति

और पलको की हरकतों से

बधती है जिन्दगी की आस ।

माँ

के श्वेत – श्याम  जटाओ में

भटकती है  स्वाँस की गंगा ,

एक थकी हुयी बेचैनी

ममता के सजल आँखो में

उतरती है …..

धिरे धिरे बादलो की आोट में ,

छुपता है‌  चाँद और माँ

के सिरहाने अन्धेरे की चादर तन जाती है ।

    (   9 /11 /1992 )

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