रात के
सर्द – उदास और गमगीन ,
धूंध से भरे नीम अन्धेरे में
साँसो की गति
और पलको की हरकतों से
बधती है जिन्दगी की आस ।
माँ
के श्वेत – श्याम जटाओ में
भटकती है स्वाँस की गंगा ,
एक थकी हुयी बेचैनी
ममता के सजल आँखो में
उतरती है …..
धिरे धिरे बादलो की आोट में ,
छुपता है चाँद और माँ
के सिरहाने अन्धेरे की चादर तन जाती है ।
( 9 /11 /1992 )