इस कायनात में
हमसब की अपनी अपनी
एक जीवन -यात्रा है ।
पशु – पक्षी से इन्सान और इन्सान से
परमात्मा तक ।
जिसमें हमें कई जन्मों और उन जन्मों
में कई पडा़वो से गुजरना पडा़ है ।
कोई भी रचनात्मक बदलाव
आसान नहीं होता ,परन्तु जानवर से
इन्सान बनने की जो अटूट धारा है ,
वह कई जगह टूटती है ,बिखरती है और
फिर निखरने और सवँरने के जद्दोजहद में
जिन्दगी चलती और बढ़ती रहती है ।
वक्त और जिन्दगी न कभी थकी है और
न कभी थमी है ,निरन्तर प्रवाहमान रही है ।
एक इन्सान की गरिमा
हासिल करने में
मनुष्य को कई जन्मों की यात्रा
करनी पड़ी होगी ।
वह हजारों वर्षों की परिक्रमा होगी ।
तब कही जा कर वह महिमा
प्राप्त हुयी होगी ।
जिन्दगी के इसी “लव” को न बुझने
देने की जिद और जुनून ने हमे
परमात्मा बनने की प्रेरणा दि होगी ।
परमात्मा बनने की दुर्लभ यात्रा यदि
संभव न भी हो तो एक मुक्कमल
इन्सान बनने का गौरव हासिल करना भी
एक अनमोल प्रयास है ,
एक अघ्यात्मिक कृत है ।