शिकायत
“ज़िन्दगी ” से नहीं ,
खुद से है ।
मैने ही “ज़िन्दगी” को समझने में
और उसे संवारने में भूल कर दि ।
पुरी “ज़िन्दगी”
मैं केवल भीड़ का हिस्सा बना रहा ,
जिसका न अपना कोई चेहरा था ,
न कोई विचार ।
नाकाम होने का ग़म मुझे उतना नहीं ,
जितना दुखः इस बात का है कि
हम किसी के काम न आ सके और
न ही खुद को उस काबिल बना सके ।
कल तक मेरे पास
दुनिया का सबसे अनमोल तोहफा था ,
जिसकी किमत दुनिया का कोई भी जौहरी
नही लगा सकता था ।
परन्तु मैने वो दौलत मुफ्त में लुटा दिये ।
“समय”
एक ऐसी सम्पदा है ,
जिसे कुदरत ने हमसब पर
दिल खोल कर लुटाया है ,
जिसके जरिये हम अपने जीवन में
अवसर का सृजन कर सके और
खुद का निर्माण कर सके ।
पर दुर्भाग्य बस , समय रहते
जिसकी किमत हम नहीं समझ सके ।
“समय”
कि सत्ता से
जिसने भी खिलवाड ़ किया है ,
“समय” ने उसे कही का नही छोड़ा ।
़बडे़ ही निर्ममता से उसे
इतिहास के कुडे़दान मे फेंक दिया ।
“समय”
का जिसने भी सम्मान किया है ,
उसे अपने खून पसीने से सिंचा है ,
उसे कुदरत ने हमेशा
सफलता के सिहांसन से नवाज़ा है ।