“सत्य”
की अभिव्यक्ति के लिये
” असत्य” के पास कोई जबान नही होती ,
क्योंकि उसके लिए करूणावान हृदय और
प्रज्ञावान दृष्टि होनी चाहिये ,
जो असत्य के पास नही होता ।
इसलिए ही “असत्य की जबान “
हमेशा लडखडा जाती है ।
कभी वह गीडगीडाता है तो कभी
गुर्राता है ।
“सत्य” नग्न है ।
उसे न पर्दे की जरूरत है न ही किसी
पहरेदारी की ।
वह निर्भिक और निर्दोष है ।
वह निष्कलंक और निष्कपट है ।
वह निष्पक्ष और निस्कम्प है ।
इसलिए ही “सत्य “
शाश्वत और सनातन है ।