” काम ” और “मोक्ष
जीवन के दो महान
लक्ष्य है ं ।
” अर्थ ” और ”धर्म”
दो साधन हैं ।
” अर्थ ” का सिधा सम्बन्ध धन से है ,
जो “काम ” का साधन है ।
इसलिए जो युग जितना कामूक
होगा ,वह उतना ही
धन पिपासु होगा ।
जो युग “मोक्ष” की आकांक्षा रखेगा
वह उतना ही आध्यात्मिक होगा ।
महत्वपूर्ण बात यह है कि
” धर्म ” भी “धन ” की तरह एक साधन है ।
जब “मोक्ष” पाना होता है तो “धर्म”
साधन बन जाता है ।
यदि “काम – तृप्ति ” की प्यास हो तो
“धन” साधन बन जाता है ।