5. अध्यात्म

“अध्यात्म”

 किसी भी समाज के सरोकार में ,

 उसके चिन्तन – मनन में ,

 उसके आचार ‌- व्यावहार मे ं

 तब प्रवेश करता है ,

 जब वह समाज अपने पेट की जंंग

 जीत चुका होता है ।

 इतिहास

 गवाह है कि ऐश्वर्य में ही कोई समाज

 या राष्ट्र ईशवर – चिन्तन के प्रति ज्यादा

 संवेदनशील होता है ।

करीबी

बहुत ही निर्मम  और निष्ठूर होती है ,

जो आध्यात्मिक उडान के लिए कोई

space  ( जगह ) नहीं छोडती है ।

” आध्यात्म “

   के इस यात्रा में साधक को कई पडा़वों

   से गुजरना होता है ,

   जहाँ सब कुछ अथाह ,अगम और  अनंत है ।

   साधक से संसार का किनारा छुट गया होता है और

   आध्यात्म का किनारा दिखायी नही देता ।

   इस मझदार के पार उतरने के लिए

   अपार साहस की जरूरत पड़ती है , क्यकिं

   जन्मों  जन्मों  की गहरी निंद्रा है ,

   सतॖत प्रयास और ईश्वर के आशीर्वाद 

   से ही ये तनद्रा टुटती है ,तभी

  ” आध्यात्म ” का सबेरा साधक देख

   पाता है ।

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