“अध्यात्म”
किसी भी समाज के सरोकार में ,
उसके चिन्तन – मनन में ,
उसके आचार - व्यावहार मे ं
तब प्रवेश करता है ,
जब वह समाज अपने पेट की जंंग
जीत चुका होता है ।
इतिहास
गवाह है कि ऐश्वर्य में ही कोई समाज
या राष्ट्र ईशवर – चिन्तन के प्रति ज्यादा
संवेदनशील होता है ।
करीबी
बहुत ही निर्मम और निष्ठूर होती है ,
जो आध्यात्मिक उडान के लिए कोई
space ( जगह ) नहीं छोडती है ।
” आध्यात्म “
के इस यात्रा में साधक को कई पडा़वों
से गुजरना होता है ,
जहाँ सब कुछ अथाह ,अगम और अनंत है ।
साधक से संसार का किनारा छुट गया होता है और
आध्यात्म का किनारा दिखायी नही देता ।
इस मझदार के पार उतरने के लिए
अपार साहस की जरूरत पड़ती है , क्यकिं
जन्मों जन्मों की गहरी निंद्रा है ,
सतॖत प्रयास और ईश्वर के आशीर्वाद
से ही ये तनद्रा टुटती है ,तभी
” आध्यात्म ” का सबेरा साधक देख
पाता है ।