“धर्म”
कोई मजहब ,
कोई पंथ ,कोई सम्प्रदाय नही ं है ।
यह तो हमारे आध्यात्मिक जीवन का शिखर है ।
क्षितिज के पार की एक दिव्य पुकार है ।
“धर्म ” का संबंध आस्था से नही हमारे
अस्तित्व से है ।
यह सत्य से ज्यादा स्वयं की खोज है ।
” धर्म ” तो एक आन्तरिक अनुशासन और
आध्यात्मिक रूपान्तरण के द्वारा मानवता को
मुक्ति का संदेश देता है ।