4. धर्म

“धर्म”

 कोई मजहब ,

 कोई पंथ ,कोई सम्प्रदाय नही ं है ।

 यह तो हमारे आध्यात्मिक जीवन का शिखर है ।

 क्षितिज के  पार  की एक दिव्य पुकार है ।

 “धर्म ” का संबंध  आस्था से नही हमारे

  अस्तित्व से है ।

  यह सत्य से ज्यादा  स्वयं की खोज है ।

 ‌ ” धर्म ” तो एक आन्तरिक अनुशासन और

    आध्यात्मिक रूपान्तरण के  द्वारा मानवता को

    मुक्ति का संदेश देता है ।

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