हर युग की अपनी चिन्ताऐ और चुनौतियां
होती है ।
रचनाकार अपनी रचनाओ में उन सबसे
गुजरना चाहता है ,
और जनने की कोशिक करता है कि
आखिर में बात क्या है ?
हर रचनाकार
अपनी रचनाओ में
खुद को ही ढूंढता फिरता है ,
कभी “पात्र ” के रुप में तो कभी
“प्रतिक ” के रूप में ,
कभी ” नायक ” के रुप मे तो
कभी “खलनायक” के रूप मे ं ।
यदि आप “India ” को नही ,बल्कि “भारत “, को गहराई और विस्तार से समझना चाहते हैं ,
तो आपको भक्ति काब्य में “कबिर ” को
और हिन्दी साहित्य में ” प्रेमचंद ” को और
महा कवि ” निराला ” को और
फिल्मों में “शैलेन्द्र ” को सुनना होगा ।
“साहित्य “बडे़ सुक्ष्म तरिके से
जनमानस की संवेदना का परिषकार
करती है और उसके सरोकार को विस्तार
देती है ,और हमे ं यथास्थिति से बाहर
निकलने को प्रेरित करती है ।
बात विद्रोह की हो , जरूरी नही ,
बल्कि एक छटपटाहट ,
एक बेचैनी ,
एक असंतोष , और बेबसी की
अभिव्यक्ति भी रचना को अमर
बना देती है ।
” आंतोन चेखव ” इसके उदाहरण है ।
रूसी क्रान्ति के जनक ” ब्लादिमीर लेनिन “
चेखव की महान रचना ” वार्ड नंबर 6 “
पढ़ने के बाद उस रात चैन से सो नही सके ,
पुरी रात अपनी बालकनी मे टहलते रहे ,
और सोचते रहे कि हमारी अवाम अब भी
बेसिक चिकित्सा सुविधा से कोसो दूर है ।
शायद यही किसी रचना की उपलब्धि भी है ।