तुने कभी
अपने दिल पर हाथ रख कर
खुद से सवाल किया है ?
बता “जिंदगी ” तुझे जाना कहा है ?
तेरी मंजिल क्या है ?
नही पूछा है तो एक बार पुछ
“जिंदगी ” इज़हार करती है —-
अपनी ख्वाहिश े , अपने सपने ,अपने इरादे ।
मुश्किल े
यही से शुरू होती हैं ,क्योंकि
जिंदगी के चौराहे पर कोई ” Finger post “
नही होता ।
यहाँ मंजिल और दिशा खुद तय करनी होती है ।
यही जिंदगी के सपने को एक मजबूत इरादे की
जरूरत महसूस होती है ,
जो मुश्किल से मुश्किल घड़ी में अपने
सपने के साथ खडा होता है ।
शुरूआत मे
किसी को भी अपनी मंजिल का
मुकम्मल तसवीर क्या होगी ,
पता नही होता ?
जैसे जैसे व्यक्ति आगे बड़ता जाता है ,
मंजिल की एक धूधली सी तसवीर उभरने लगती है ।
तेरा जोश और तेरा जुनून ही
एक दिन मंजिल को तेरे सामने खडा कर देता है ।
अक्सर जिंदगी के बन्द दरवाजे
खुद के हौसले की चाबी से ही खुले है ।
तू कभी ये सोच कर परेशान मत होना , कि
तू अपनी कतार मे सबसे पिछे खडा़ है।
तेरे पिछे भी एक लम्बी कतार है ।
तुछे अभी पता नही ,
जिन्दगी से बडी और लम्बी कोई कतार नहीं होती ।
बात लम्बी कतार की नही होती , बल्कि
सही दिशा ओर सही रफ्तार और मजबूत
इरादे क साथ आगे बढते रहने की है ।
तेरा जुनून और तेरा पागलपन ही तेरी मंजिल
और तेरा मुस्तकबिल तय करेगा ।
मजरुह सुलतानपुरी के गीत के दो लाइने
याद आ रही है :
“रुक जाना नही तू कही हार के
काँटों पे चल कर मिलेगे साये बहार के “