9. “कर्ता केवल एक है “

 तू अपने  को कुछ होने का ,

  या 

  कुछ हासिल कर लेने का गुरूर

  मत पाल लेना ,क्योंकि इस ब्राह्मण्ड़

  में  “कर्ता” (Doer) 

  केवल एक है ।

उसी के बदौलत पूरी क़ायनात

रौशन है ।

सूर्य ,चाँद और तारे उसी

के नूर से प्रकाशमान हैं ।

शबनम की हर बूँद का वजूद

भी उसी से है ।

इसका मतलब यह कत्तई नही कि

हमारे जीवन में पराक्रम , पुरूषार्थ ,

परिश्रम और हुनर  की

कोई भूमिका नहीं होती ?

हमारी

कभी न हार मानने वाली ” जीजिविषा “

के कारण ही परमात्मा ने

हमें अपने  भाग्य का  निर्माता

बनाया है ।

हम सृष्टा है ।

परन्तु जीत और जश्न में

जब हमारा गुरूर

सर चठ़ कर बोलने लगता है ,

फिर वो हमारे लिये शुभ नही होता ।

अहंकर सदैव हमें परमात्मा

से दूर ले जाता है ।

एक पल के लिये हम ये

भूल जाते हैं कि

हम सब की साँस की डोर

उसी के हाथ में है । 

“मृत्यु”

बड़े भाग्य की बात उन लोगों के

लिए होती है ,जिसने खुद को जान लिया ।

वे ही मृत्यू के हकदार है ,हम तो शरीर रूपी

वस्त्र बदल कर मृत्युलोक में फिर

उपस्थित हो जाते हैं ।

हमें यह याद रखनी होगी कि

हमें इस मृत्युलोक में

तब तक आना जाना होगा

जब तक हम अपनी वासनाओं – तृष्णावों

से मुक्त नही हो जाते ।

गुरूर और अहंकार  भी हमारी मुक्ति 

में बाधक रहा है ,इसीलिए कभी भी खुद

को कर्ता मानने का भूल हमें नही करनी चाहिए ।

सब कुछ उसे ही समर्पित कर ,

हम अपने अहंकार से मुक्त हो जाते हैं ।

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