तू अपने को कुछ होने का ,
या
कुछ हासिल कर लेने का गुरूर
मत पाल लेना ,क्योंकि इस ब्राह्मण्ड़
में “कर्ता” (Doer)
केवल एक है ।
उसी के बदौलत पूरी क़ायनात
रौशन है ।
सूर्य ,चाँद और तारे उसी
के नूर से प्रकाशमान हैं ।
शबनम की हर बूँद का वजूद
भी उसी से है ।
इसका मतलब यह कत्तई नही कि
हमारे जीवन में पराक्रम , पुरूषार्थ ,
परिश्रम और हुनर की
कोई भूमिका नहीं होती ?
हमारी
कभी न हार मानने वाली ” जीजिविषा “
के कारण ही परमात्मा ने
हमें अपने भाग्य का निर्माता
बनाया है ।
हम सृष्टा है ।
परन्तु जीत और जश्न में
जब हमारा गुरूर
सर चठ़ कर बोलने लगता है ,
फिर वो हमारे लिये शुभ नही होता ।
अहंकर सदैव हमें परमात्मा
से दूर ले जाता है ।
एक पल के लिये हम ये
भूल जाते हैं कि
हम सब की साँस की डोर
उसी के हाथ में है ।
“मृत्यु”
बड़े भाग्य की बात उन लोगों के
लिए होती है ,जिसने खुद को जान लिया ।
वे ही मृत्यू के हकदार है ,हम तो शरीर रूपी
वस्त्र बदल कर मृत्युलोक में फिर
उपस्थित हो जाते हैं ।
हमें यह याद रखनी होगी कि
हमें इस मृत्युलोक में
तब तक आना जाना होगा
जब तक हम अपनी वासनाओं – तृष्णावों
से मुक्त नही हो जाते ।
गुरूर और अहंकार भी हमारी मुक्ति
में बाधक रहा है ,इसीलिए कभी भी खुद
को कर्ता मानने का भूल हमें नही करनी चाहिए ।
सब कुछ उसे ही समर्पित कर ,
हम अपने अहंकार से मुक्त हो जाते हैं ।