“आत्म साक्षात्कार “
की पहली शर्त है कि
हम कितने “चैतन्य” हैं ?
हम कितने होश में है ं ?
हमे ं
इस तरह जीना है कि
हम पर जरा भी राँख इकट्ठी न हो ,
हमारे भीतर की जागरण की आग
जलती रहनी चाहिए ।
हमारा हर पल ,हर क्षण
पुरे होश में हो ।
इन्हीं चैतन्य के क्षणों में
परमात्मा की झलक मिल पाती है ।
” मुर्छा’
हमारे जीवन और आत्मा दोनों
का ही क्षय है ।
” चैतन्य” का पूर्ण जागरण ही
” आत्म -साक्षात्कार ” है ।