75. “मोबाईल” एक अज़ीज दोस्त या बे -रहम दुश्मन

मेरे लिए

यह कहना जरा मुश्किल है कि

“मोबाईल” मेरा अज़ीज दोस्त  है  या

बे – रहम दुश्मन ‌ ?

पर इतना  तय है  कि इसके बिना

जिन्दगी अधूरी है ।

वह उस मेहबूब की तरह है

जो आपसे , आपके बिस्तर से  लेकर

सिने तक चिपकी रहती है ।

वह है तो ही आप हैं ।

हर पल , हर घड़ी वह

आपकी जिन्दगी में शामिल है ‌।

उसके पास आपके हर सवाल 

का   जवाब है ।

यही उसकी कामयाबी और करिश्मा

का राज़ है ।

वह आपकी अशान्ति में  शान्ति है  

और शान्ति में  अशान्ति भी है ,

क्योंकि वह निर्लिप्त और निष्पक्ष है ।

उसका हर काँल  आपको

जिन्दगी के रिंग में  खडा़ कर

देता है ।

आप हमेशा अपने को

एक पहरेदारी के बिच पाते हैं ।

आपकी निजता अब सार्वजनिक है ।

आप अकेले जरुर हैं ,पर

सबके  निगाह में हैं ।

आप कही भी है ं ,पर आप

विजीवल  हैं ।

ये सौदा फायदे का है या 

नुकशान का ?

तय आपको करना है ‌।

इसकी किमत हमने अपना

“एकान्त” खो कर चुकाया है ।

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