कुछ कहने से पहले
बोलने की तमीज़ सीख ।
लिखने से पहले
पढ़ने के काबिल बन और
जिन्दगी जीने के पहले
जिन्दगी की समझ अपने में पैदा कर ।
तब कहीं जाकर जिन्दगी
मुकम्मल तरिके से अपनी तस्वीर
पेश कर पाती है ।
आज
हर “अर्जुन” अपनी
जिन्दगी के जिस कुरुक्षेत्र में
अपने को खडा़ पाता है ,
वहाँ उसे जिन्दगी “अर्जुन ” और “कृष्ण”
की दोहरी भूमिका में देखना
चाहती है ।
कहीं “अर्जुन” का संश्य और अनिश्चय है
तो वही “कृष्ण “का लक्ष्य के प्रति
कठोर और निर्मम संदेश ।
“अर्जुन”
का यही तो द्वद है कि उचित और
अनिवार्य क्या है ?
तभी “कृष्ण” का आदेश आता है कि
“अर्जुन” उठा गान्डीव
बिना किसी प्रतिक्षा के “कर्ण”
पर प्रहार कर !
आज “कर्ण” शस्त्रविहीन है तो
तेरे प्रचण्ड पराक्रम के कारण ,
प्रहार करो “र्अजुन” !
इस प्रकार “कृष्ण” अनिर्णय और अनिश्चय से
“अर्जुन ” को मुक्त कर उसे
“एक्शन” के लिए बाध्य करते हैं ।
धर्म – अधर्म
पाप- पुण्य
न्याय – अन्याय
इतिहास को तय करने दो अर्जून !
तू इसकी चिन्ता क्यों करता है ?
दुनिया तुझे तेरे पराक्रम और तेरी विरता
के लिए याद रखेगी ,
तेरे धन ,धर्म और धाम के लिए नहीं ।
“गीता”
में “वासुदेव कृष्ण “पुरी मानवता को
यही तो संदेश देना चाहते हैं ।