7. अंतस की क्रान्ति

” अंतस की क्रान्ति ” का संबध

   ” आचरण” से नही ं

   ” चित्त ” के बदलाव से है ।

     चित्त के बदलाव के बिना

     आचरण का सुधार एक

      पाख्ण्ड बन के रह जाता है ।

      यदि

      हमारे केन्द्र पर प्रेम है तो

      निश्चित ही  परिधि पर ” प्रार्थना” होगी ।

     “परिधि” के बदलाव से केन्द्र पर

       कोई  फर्क नहीं पड़ता है ।

       केन्द्र के बदलाव से परिधि

     अपने आप  बदल जाती है ।

    ” अंतस की क्रान्ति” से ही

      धर्म के बिज अंकुरित होते है ं

      जो आन्तरिक रूपान्तरण के

      परिणाम और प्रतिबिम्ब ‌होते हैं ।

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