” अंतस की क्रान्ति ” का संबध
” आचरण” से नही ं
” चित्त ” के बदलाव से है ।
चित्त के बदलाव के बिना
आचरण का सुधार एक
पाख्ण्ड बन के रह जाता है ।
यदि
हमारे केन्द्र पर प्रेम है तो
निश्चित ही परिधि पर ” प्रार्थना” होगी ।
“परिधि” के बदलाव से केन्द्र पर
कोई फर्क नहीं पड़ता है ।
केन्द्र के बदलाव से परिधि
अपने आप बदल जाती है ।
” अंतस की क्रान्ति” से ही
धर्म के बिज अंकुरित होते है ं
जो आन्तरिक रूपान्तरण के
परिणाम और प्रतिबिम्ब होते हैं ।