“परमात्मा”
स्वयं में पूर्ण है ।
वह इन्सान को कभी “अपूर्ण”
बना ही नहीं सकते । इसलिए
तू कही से अपूर्ण नहीं है ।
उसने तुझे “पूर्ण” बनाकर ही
इस धरा पर भेजा है ।
अब तुम्हे ं अपने जज्बे , जुनून और
जोश से अपनी मंज़िल तक का सफर
स्वयं तय करना होगा ।
इस जगत में
तेरी “जबान” और “जज्बात” की
तब तक कोई किमत नही होगी ,
जब तक तू किसी” हैसियत”
के काबिल नहीं बन जाता ।
किसी के लिए
कभी कोई “आफ़ताब “
उपर से नीचे नही उतरता ।
खुद नन्हा सा “आफ़ताब” बन कर ,
खुद को रौशन करना पड़ता है ।
इस बात को याद रख !
केवल “मन्नत” रखने और
“ताबिज” पहनने से किसी को
“जनन्त” नसीब नही होती ,
इस जहाँ में “जनन्त” के लिये
खुद को “सलिब” पर लटकाना
पड़ता है ।
” परमात्मा”
किसी को कभी “भिखारी”
देखना नही चाहता ,
परन्तु हम स्वंय इस संसार
में “दीनता” अर्जित कर लेते हैं ।