69. तू “अपूर्ण ” नही है ।

“परमात्मा”

 स्वयं में पूर्ण है ।

 वह इन्सान को कभी “अपूर्ण”

 बना ही नहीं सकते । इसलिए

 तू कही से अपूर्ण नहीं है ।

 उसने तुझे “पूर्ण”  बनाकर ही

 इस धरा पर भेजा है ।

 अब तुम्हे ं अपने जज्बे , जुनून और

 जोश से अपनी मंज़िल तक का सफर

 स्वयं तय करना होगा ।

 इस जगत में

 तेरी “जबान”  और “जज्बात” की

 तब तक कोई किमत नही होगी ,

 जब तक तू किसी” हैसियत”

 के काबिल नहीं बन जाता ।

 किसी के लिए

 कभी कोई “आफ़ताब “

 उपर से नीचे नही उतरता  ।

 खुद नन्हा सा  “आफ़ताब” बन कर ,

 खुद को रौशन करना पड़ता है ।

 इस बात को याद रख !

 केवल “मन्नत” रखने और

 “ताबिज” पहनने से किसी को

 “जनन्त” नसीब नही होती ,

  इस जहाँ में “जनन्त” के लिये

  खुद को “सलिब” पर लटकाना

  पड़ता है ।

” परमात्मा”

 किसी को कभी “भिखारी”

 देखना नही चाहता ,

 परन्तु हम स्वंय इस संसार

 में  “दीनता” अर्जित  कर लेते हैं ।

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