68. आज ” हस्तिनापुर ” पुन: मौन है ।

हम जैसे

आम लोगों की जिन्दगी

कभी सुर्क्षित नही होती ।

हम अपनी छोटी छोटी खुशियों

में मस्त और व्यस्त रहते हैं ।

एक दिन अचानक

कोई हादसा हमें विवश , लाचार और

अनाथ बना कर निकल जाता है ।

हमें तो  यह भी पता नहीं होता कि

आखिर में हमारा गुनाह क्या था ?

पुरा सिस्टम हमारे  खिलाफ खडा़ हो जाता है ।

स्वतंत्रता , न्याय , कानून का राज जैसे शब्द

खोखले और बेमानी लगने लगता है ।

आज ” हस्तिनापुर “

पुन: मौन है ।

सबकी नज़र झूकी हुयी है ।

आज फिर दुस्साशन का हाथ

“द्रौपदी ” के वस्त्र पर है , पर मेरे

 पास ” कृष्ण ” तो नही है ं,पर

 “कृष्ण” की भूमिका में मेरी “आवाम”

 आज मेरे साथ खड़ी  है ।

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