हम जैसे
आम लोगों की जिन्दगी
कभी सुर्क्षित नही होती ।
हम अपनी छोटी छोटी खुशियों
में मस्त और व्यस्त रहते हैं ।
एक दिन अचानक
कोई हादसा हमें विवश , लाचार और
अनाथ बना कर निकल जाता है ।
हमें तो यह भी पता नहीं होता कि
आखिर में हमारा गुनाह क्या था ?
पुरा सिस्टम हमारे खिलाफ खडा़ हो जाता है ।
स्वतंत्रता , न्याय , कानून का राज जैसे शब्द
खोखले और बेमानी लगने लगता है ।
आज ” हस्तिनापुर “
पुन: मौन है ।
सबकी नज़र झूकी हुयी है ।
आज फिर दुस्साशन का हाथ
“द्रौपदी ” के वस्त्र पर है , पर मेरे
पास ” कृष्ण ” तो नही है ं,पर
“कृष्ण” की भूमिका में मेरी “आवाम”
आज मेरे साथ खड़ी है ।