जब बेटी की कामयाबी पर
पिता की आँखों में खुशी
के आसूँ छलक उठते हैं ,तो
बेटी गुरुर से खिल उठती है ।
पहली बार उसे अपने बेटी
होने पर गर्व और अपनी कामयाबी
पर नाज़ होता है ।
पिता के आँखों के आसूँ
केवल खुशी के आसूँ नहीं होते ,
वह संर्घष ,अपमान , पराजय और
लोगों के तानों का सैलाब होता है ,
जो अचानक फूट पड़ता है ।