जिस देश का सासंकृतिक और एतिहासिक
धरोहर की पृष्टभूमि धर्म और अध्यात्म रहा
हो ,उस मुल्क के समाज को किसकी नज़र
लग गई है ?
क्या हो गया है हमारे देश को ?
बेटियाँ अब कहाँ सुरक्षित हैं ?
जिस माँ की दो बेटियों के साथ
स्कूल में घृणित हादसा हुआ ,
वह माँ गर्भवती है , वह हाथ जोडती रही ,गोहार लगाती रही , पर उसे सुनने को कोइ तैयार नहीं था । उसे एक FIR के लिये 12 घंटे तक थाने में बैठाए रखा गया ,
आखिर क्यों ?
किसके दबाव में प्रशासन के हाथ बधे हुये थे ?
वह कौन रसूकदार राजनेता का स्कूल है ,
जिसके स्कूल की प्रतिष्ठा और साख उन
बेटियों की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण था ,
जो लहूलुहान स्थितियों में पायी गयी थी ?
आज राजनीति इतनी गन्दी और बेशर्म
हो गई है कि मुख्यमंत्री की टिप्पणी आती है कि
“इस घटना का राजनीतिकण किया जा रहा है !”
दुर्भाग्य है उस राज्य का है , जिसका वे नेतृत्व कर रहे
हैं ।उन्हे चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए ,
जिसके जबान से उन बेटियों के लिए संवेदना के
दो शब्द नही निकल सके ।
अब फाँसी दिलाने की बात कर रहे हैं ।
मुख्य मंत्री जी , सावधान हो जाइये !
राजनीतिक जमीन आपके पैरों के नीचे से
खिसक रही है , पानी नाक से उपर बह रही है ।
ज्यादा कहना उचित नहीं होगा ।
ये सर झूकता है सम्मान में
उस आवाम के लिये ,
जो नि:स्वार्थ ,उस पीडित परिवार के लिये ,
सड़को पर उतरती हैं , लाठियाँ खाती हैं ।
नपुसंक और निर्लज प्रशासन दोषियों को नही ,
बल्कि प्रदरशनकारियो को आरेस्ट कर , रस्सी
में बांध कर थाने ले जाती है ।
ये क्रूर चेहरा है हमारी नौकरशाही का !
वास्तव में ये किसको बचाना चाहते हैं ?
उन पर किसका दबाव था ?
हमारा सिस्टम कैसे इतना निर्मम ,नपुसंक और
पत्थरदिल हो गया ?
क्या इनके धरों में बेटियाँ नही होती ?
ये केवल आवाम की आवाज
की ताकत है, जिससे पीड़ित परिवार की
उम्मीद और हौसला बरकरार है कि अब इन्हे ं
एक दिन न्याय मिल सकेगा।