66. सरस्वती लता जी के राज्य में बेटियाँ असुरक्षित क्यों ? (part 2)

जिस देश का सासंकृतिक और एतिहासिक

धरोहर की पृष्टभूमि धर्म और अध्यात्म रहा

हो ,उस मुल्क के समाज को किसकी नज़र

लग गई है ?

क्या हो गया है हमारे देश को ?

बेटियाँ अब कहाँ सुरक्षित हैं ?

जिस माँ की दो बेटियों के साथ

स्कूल में घृणित हादसा हुआ ,

वह माँ गर्भवती है , वह  हाथ जोडती रही ,गोहार लगाती रही , पर उसे सुनने को कोइ तैयार नहीं था ।  उसे एक FIR के लिये 12 घंटे तक थाने में बैठाए रखा गया ,

आखिर क्यों ?

किसके दबाव में प्रशासन के हाथ बधे हुये थे ?

वह कौन रसूकदार राजनेता का स्कूल है ,

जिसके स्कूल की प्रतिष्ठा और साख उन

बेटियों की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण था ,

जो लहूलुहान स्थितियों में पायी गयी थी ?

आज राजनीति इतनी गन्दी और बेशर्म

हो गई है कि मुख्यमंत्री की टिप्पणी आती है कि

“इस घटना का राजनीतिकण किया जा रहा है !”

दुर्भाग्य है उस राज्य का है ,  जिसका वे  नेतृत्व कर रहे

हैं ।उन्हे चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए ,

जिसके जबान से उन बेटियों के लिए संवेदना के 

दो शब्द नही निकल सके ।

अब फाँसी दिलाने की बात कर रहे हैं ।

 मुख्य मंत्री जी , सावधान हो जाइये !

राजनीतिक जमीन आपके पैरों के नीचे से

खिसक रही है , पानी नाक से उपर बह रही है ।

ज्यादा कहना उचित नहीं होगा ।

ये सर झूकता है सम्मान में

उस आवाम के लिये ,

जो नि:स्वार्थ ,उस पीडित परिवार के लिये ,

सड़को पर उतरती हैं ,  लाठियाँ खाती हैं ।

नपुसंक और निर्लज प्रशासन दोषियों को नही ,

बल्कि प्रदरशनकारियो को आरेस्ट कर , रस्सी

में बांध कर थाने ले जाती है ।

ये क्रूर चेहरा है हमारी नौकरशाही का !

वास्तव में ये किसको बचाना चाहते हैं ?

उन पर किसका दबाव था ?

हमारा सिस्टम कैसे इतना निर्मम ,नपुसंक और

पत्थरदिल हो गया ?

क्या इनके धरों में बेटियाँ नही होती ?

ये केवल आवाम की आवाज

की ताकत है,  जिससे पीड़ित परिवार की

उम्मीद और हौसला बरकरार है कि अब इन्हे ं

एक दिन न्याय मिल सकेगा।

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