64. “असहमति “

असहमति और प्रतिरोध

किसी के प्रति अवज्ञा या अपमान नही ंहोता ,

  न ही  यह  किसी के विरुद्ध प्रतिशोध  होता है ।

यह एक नैसर्गिक विरोध की अवाज होती है ,

जो किसी भी अन्याय के विरुद्ध और सत्य

के पक्ष में उठती है ‌।ये एक आग है ,

जो जिन्दगी में जलती रहनी चाहिए ।

अन्यथा जिन्दगी  “राख”  बन कर रह जाती है ।

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