असहमति और प्रतिरोध
किसी के प्रति अवज्ञा या अपमान नही ंहोता ,
न ही यह किसी के विरुद्ध प्रतिशोध होता है ।
यह एक नैसर्गिक विरोध की अवाज होती है ,
जो किसी भी अन्याय के विरुद्ध और सत्य
के पक्ष में उठती है ।ये एक आग है ,
जो जिन्दगी में जलती रहनी चाहिए ।
अन्यथा जिन्दगी “राख” बन कर रह जाती है ।