61. “जिन्दगी ” को सिफारिश नही “सम्मान ” चाहिए ।

सुविधा , सहुलियत और  सिफारिश 

पर जब जिन्दगी

बसर होने लगती है ,तो जीवन के

आदर्श और वसूल 

पिछे छूट जाते हैं ।

आप परजीवी और समझौता – जीवी

बन कर रह जाते हैं ।

प्रतिरोध की नैतिक शक्ति हमेशा

के लिए विदा हो जाती है ।

चाटुकारिता  और  चरण वंदना  ही

जिन्दगी के महत्वपूर्ण टूल्स

रह जाते हैं ।

फिर जिन्दगी पैरो पर नही ं

घूटनो पर आ जाती है ,क्योंकि

आपकी आत्मा और चेतना

दोनों मर चुकी होती है ।

Leave a comment