6. “दान”

“दान”

 आध्यात्मिक जगत का

  मुख्य  द्वारा है ।

  धर्म का मुख्य आभूषण है ।

” दान”. में सभी कुछ न्यौछावर करने

  का अपूर्व  साहस  होता है ।

 ” दानी ” यदि कर्ण  हो ,तो

”  दान” का महिमा शिखर पर होती है ।

  “दानी” के हृदय में

   कृपणता  का क्षुद्र  संसार नही ं,

   करूणा का महासागर होता है ।

   करूणा के कारण ही

  ” दान” पुण्य बन जाता है ।

   यदि दान में अहंकार की थोडी़

   भी छाया होगी तो वह पाप होता है ।

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