“दान”
आध्यात्मिक जगत का
मुख्य द्वारा है ।
धर्म का मुख्य आभूषण है ।
” दान”. में सभी कुछ न्यौछावर करने
का अपूर्व साहस होता है ।
” दानी ” यदि कर्ण हो ,तो
” दान” का महिमा शिखर पर होती है ।
“दानी” के हृदय में
कृपणता का क्षुद्र संसार नही ं,
करूणा का महासागर होता है ।
करूणा के कारण ही
” दान” पुण्य बन जाता है ।
यदि दान में अहंकार की थोडी़
भी छाया होगी तो वह पाप होता है ।