58. इन्सान बनने की दुर्लभ यात्रा

इस कायनात में

हमसब की अपनी अपनी

एक जीवन -यात्रा है ।

पशु – पक्षी से इन्सान और इन्सान से 

परमात्मा तक ।

जिसमें हमें कई जन्मों और उन जन्मों

में कई पडा़वो से गुजरना पडा़ है ।

कोई भी रचनात्मक  बदलाव

आसान नहीं होता ,परन्तु जानवर से

इन्सान बनने की जो  अटूट  धारा है ,

वह कई जगह टूटती है ,बिखरती है और

फिर निखरने और सवँरने के जद्दोजहद में

जिन्दगी चलती और बढ़ती रहती है ।

वक्त और जिन्दगी  न कभी  थकी है और

न कभी थमी है ,निरन्तर प्रवाहमान रही है ।

एक इन्सान की गरिमा

हासिल करने में

मनुष्य को कई जन्मों की यात्रा

करनी पड़ी होगी ।

वह हजारों  वर्षों की परिक्रमा  होगी ।

तब कही जा कर वह महिमा

प्राप्त हुयी होगी ।

जिन्दगी के ‌इसी “लव” को न बुझने

देने की जिद और जुनून ने हमे

परमात्मा बनने की प्रेरणा दि होगी ।

परमात्मा बनने की दुर्लभ यात्रा यदि

संभव न भी हो तो एक मुक्कमल

इन्सान बनने का गौरव हासिल करना भी

एक अनमोल प्रयास है ,

एक अघ्यात्मिक कृत है ।

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