54. ” नाकाम ” होने का ड़र

” जिन्दगी “

   छोटी   छोटी   जरूरतों  और

   जुगनू की तरह चमकते  हसरतों

    की एक लम्बी  सिलसिला भर है या

    कुछ और भी है ?

    मेरी जिन्दगी में  कठिनाईया रही हैं ,

    पर कष्ट जैसी कोई बात नही है ।

    अन्न और आश्रय का भी कभी संकट

    नही रहा ।

    कुछ सुख और दु:ख के पल रहे है ं,

    कुछ सफलताएँ और कुछ असफलताएँ  भी रही हैं।

    पर न जाने क्यों ,

    जब भी अकेला होता हूँ तो

    एक गहरी उदासी घेर लेती है ।

    यह  “डर  से भरा अन्धेरा”  क्या है ?

    इसके पार जाने का रास्ता क्या है ?

   एक  छलांग तो लगानी होगी ,

   रास्ते ही मंजिल  का पता बता देते हैं ।

   रही बात ड़र की  तो

   अपने जज्बे और जुनून से ही किसी

   भी ड़र को परास्त किया जा सकता है ।

    जहाँ  डर का अन्धेरा नही होता ,वही

    “जीत का सबेरा ” होता है । 

Leave a comment