” जिन्दगी “
छोटी छोटी जरूरतों और
जुगनू की तरह चमकते हसरतों
की एक लम्बी सिलसिला भर है या
कुछ और भी है ?
मेरी जिन्दगी में कठिनाईया रही हैं ,
पर कष्ट जैसी कोई बात नही है ।
अन्न और आश्रय का भी कभी संकट
नही रहा ।
कुछ सुख और दु:ख के पल रहे है ं,
कुछ सफलताएँ और कुछ असफलताएँ भी रही हैं।
पर न जाने क्यों ,
जब भी अकेला होता हूँ तो
एक गहरी उदासी घेर लेती है ।
यह “डर से भरा अन्धेरा” क्या है ?
इसके पार जाने का रास्ता क्या है ?
एक छलांग तो लगानी होगी ,
रास्ते ही मंजिल का पता बता देते हैं ।
रही बात ड़र की तो
अपने जज्बे और जुनून से ही किसी
भी ड़र को परास्त किया जा सकता है ।
जहाँ डर का अन्धेरा नही होता ,वही
“जीत का सबेरा ” होता है ।