53. जिन्दगी ” हादसा ” नही उपहार है

शिकायत

“ज़िन्दगी ”  से नहीं , ‌‌‌  

खुद से है ।

मैने ही “ज़िन्दगी”  को समझने में

और उसे संवारने में भूल कर दि ।

पुरी “ज़िन्दगी”

मैं  केवल भीड़ का हिस्सा बना रहा ,

जिसका न अपना कोई चेहरा था ,

न कोई विचार ।

नाकाम होने का ग़म  मुझे उतना नहीं ,

जितना दुखः इस बात का है कि

हम किसी के काम  न आ सके और

न ही खुद को उस काबिल बना सके ।

कल तक मेरे पास

दुनिया का सबसे अनमोल तोहफा था ,

जिसकी किमत दुनिया का कोई भी जौहरी

नही लगा सकता था ।

परन्तु मैने वो दौलत मुफ्त में लुटा दिये ।

“समय”

 एक  ऐसी  सम्पदा है ,

 जिसे कुदरत ने हमसब पर 

 दिल खोल कर लुटाया है ,

जिसके जरिये हम अपने जीवन में

अवसर का सृजन कर सके और

खुद का  निर्माण कर सके ।

पर दुर्भाग्य बस , समय रहते

जिसकी किमत हम नहीं समझ सके ।

“समय”

 कि सत्ता से

 जिसने भी खिलवाड ़ किया है ,

 “समय” ने उसे कही का नही छोड़ा ।

 ़बडे़ ही  निर्ममता से उसे

 इतिहास के कुडे़दान ‌मे फेंक दिया ।

 “समय”

  का जिसने भी सम्मान किया है ,

  उसे अपने खून पसीने से सिंचा है ,

  उसे कुदरत ने हमेशा

  सफलता के सिहांसन से नवाज़ा है ।

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