52. “सत्य”

“सत्य”

 की अभिव्यक्ति के लिये 

” असत्य” के पास कोई जबान नही होती ,

क्योंकि उसके लिए करूणावान हृदय और

प्रज्ञावान दृष्टि होनी चाहिये ,

जो असत्य के पास नही होता  ।

इसलिए ही “असत्य की जबान “

हमेशा लडखडा जाती है ।

कभी वह गीडगीडाता है तो कभी

गुर्राता है ।

“सत्य” नग्न है ।

 उसे न पर्दे की जरूरत है  न  ही  किसी

 पहरेदारी की ।

वह निर्भिक और निर्दोष है ।

वह निष्कलंक और निष्कपट है ।

वह निष्पक्ष और निस्कम्प है ।

इसलिए ही “सत्य “

शाश्वत और सनातन है ।

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