” वासना “
को लेकर हमारी धारणा
सदा से ही अधार्मिक ,अवैज्ञानिक , और
निषेधात्मक रही है ।
सच्चाई यह है कि “वासना ” हमारी
ऊर्जा है , जीवन की सम्पदा है ,
हमारी जीवन – धूरी है ।
“वासना” ही जीवन में सृजन और निर्माण
को प्रेरित करती है और यह
पुरी क़ायनात को अस्तित्व में लाती है ।
मूल प्रश्न तो यह है कि
एक राष्ट्र और एक समाज इस ऊर्जा का
सदुपयोग कैसे करता है ?
इस ऊर्जा को
यदि धन अर्जित करने में लगाते हैं ,
तो धन का अंबार खड़ा हो जाता है ।
जब यही ‘वासना”
स्त्री की तरफ मुखातीब होती है तो
घर संसार बस जाते हैं ।
जब यही ऊर्जा परमात्मा की दिशा
मे आगे बढ़ती है तो प्रार्थना बन जाती है ।
” वासना”
तो तठस्त है ।
वह अपने आप में कोई लक्ष्य लेकर
नहीं आती ।
लक्ष्य तो हम तय करते है ,
फिर हमारी सारी ऊर्जा उसी
उसी दिशा में बहना शुरू हो जाती है ।
जब तक “वासना” प्रार्थना
नही बन जाती तब तक हमें
बार बार इस संसार में लौट कर
आना होता है ।
आज भी “वासना” अन्धेरे में
प्रार्थना होने का मार्ग
टटोल रही है ।