3. जीवन का संघर्ष

हम मनुष्य की तरह

इस पृथ्वी पर नहीं आते,

बल्कि एक संभावना लेकर अवतरित होते हैं ।

‘मनुष्यता‌’ तो

हमें अर्जित करनी पडती है।

यही हमारी स्वतंत्रता भी है और संताप भी।

‘परमात्मा’

ने इसलिए मनुष्य को सृष्टा बनाया ताकि वह अपना

सृजन और निर्माण स्वयं कर सके ।

जब भी ‘जिन्दगी’ 

किसी ‘प्रयोजन’ से 

जुड़ती है तो

एक महान लक्ष्य के लिए

संर्घष का सुत्रपात होता है ।

संर्घष ही उसे ‘मनुष्यता’ की शिखर तक पहुँचाता है ।

अन्यथा व्यक्ति का कोई मोल नहीं होता ।

‘मार्क्स’

जब अपने जीवन के लक्ष्य को

‘सर्वहारा’ के मुक्ति के साथ जोडते है तो ,

विश्व इतिहास उन्हे ‘मजदूरों’ का मसीहा

के रूप में याद करता है।

एम  के  गाॅघीॅ 

जब भारत की आजादी और करोड़ो भारतीयो के 

मुक्ति के लिए अपना वलिदान देते है तो दुनिया उन्हे

‘महात्मा ‘ गाॅघी के रूप में याद करती है ।

मानव जीवन के संर्घष का  इतिहास

हर उस मनुष्य  की जीवन – गाथा  है ,

जिसने अपने हिस्से के सत्य के लिए

खुद का बलिदान कर ,उसकी  रक्षा करता है।

तभी इतिहास में उसे नायक की तरह

याद किया जाता है ।

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