23.साहित्य : संवेदना का परिषकार

हर युग की अपनी चिन्ताऐ  और चुनौतियां

होती है ।

रचनाकार अपनी रचनाओ में उन सबसे

गुजरना चाहता है ,

और जनने की कोशिक करता है कि

आखिर में बात क्या है ?

हर रचनाकार

अपनी रचनाओ में

खुद को ही ढूंढता फिरता है ,

कभी “पात्र ” के रुप में  तो कभी

“प्रतिक ” के रूप में ,

कभी ” नायक ” के रुप मे तो

कभी “खलनायक” के रूप मे ं ।

यदि आप “India ” को नही ,बल्कि “भारत “, को गहराई  और विस्तार से समझना चाहते हैं ,

तो आपको भक्ति काब्य में  “कबिर ” को

और हिन्दी साहित्य में  ” प्रेमचंद ” को और

महा कवि ” निराला ”  को  और

फिल्मों में  “शैलेन्द्र ” को सुनना होगा ।

“साहित्य “बडे़ सुक्ष्म तरिके से

जनमानस की संवेदना का परिषकार

करती है और उसके सरोकार को विस्तार

देती है ,और हमे ं यथास्थिति से बाहर

निकलने को प्रेरित करती है ।

बात विद्रोह की हो , जरूरी नही ,

बल्कि एक छटपटाहट ,

एक बेचैनी ,

एक असंतोष , और बेबसी की

अभिव्यक्ति भी  रचना को अमर 

बना देती है ।

” आंतोन चेखव ” इसके उदाहरण है ।

रूसी क्रान्ति के जनक ” ब्लादिमीर  लेनिन “

चेखव की महान रचना ” वार्ड  नंबर  6 “

पढ़ने के बाद उस रात चैन से सो नही सके ,

पुरी रात अपनी बालकनी मे टहलते रहे ,

और सोचते रहे  कि हमारी अवाम अब भी

बेसिक चिकित्सा सुविधा से  कोसो दूर है ।

शायद यही किसी रचना की उपलब्धि भी है ।

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