20. जीवन की प्रतिबद्धता

“जिन्दगी ” अगर हो तो ” मक़सद ” के साथ हो ,
 उस “मक़सद “. के लिये
 एक ” Commitment ” अपने आप से भी हो ,
 जहाँ ‌ ”  समझौता ”  की कोई  गुजांइस न हो ।
 
ऐसी स्थीति में ” जिंदगी “
 लाभ – हानी ,सफलता – असफलता 
 से उपर उठ कर  जो फैसला लेती है ,
 उसका आधार  वो फैसला  और वो वादा
 होता है , जो वह खुद से किया होता है ।


 बात बिगड़ती है ” लाभ ” से नही ,
” लालच ” से ( Greed )
  जो व्यक्ति के जीवन की  “प्राथमिकता “
  बदल देती है ।
 ” लालच ” व्यक्ति  को   खुदगर्ज 
  बना देती है  ,जिसके कारण व्यक्ति के
  जीवन से ” मानवीय पहलू ” सदा के लिए
  विदा हो जाते है ।


 ”  जीवन “
    भले ही छोटा हो ,
    उसमे एक ” त्वरा ” हो ,
    एक  “दिव्य छटपटाहट ” हो
    अपने ” मक़सद ” के लिए पागलपन हो ,
    उसके लिए मर मिटने का साहस हो ,
   तभी  “जिंदगी” को एक गरिमा , एक “अर्थ”
   एक ” perfection” मिलता है ,अन्यथा
‌  “जिंदगी ” एक अर्थहीन घटनाओं का श्रीखंला
   बन कर रह जाती है ।

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