“जिन्दगी ” अगर हो तो ” मक़सद ” के साथ हो , उस “मक़सद “. के लिये एक ” Commitment ” अपने आप से भी हो , जहाँ ” समझौता ” की कोई गुजांइस न हो ।
ऐसी स्थीति में ” जिंदगी “ लाभ – हानी ,सफलता – असफलता से उपर उठ कर जो फैसला लेती है , उसका आधार वो फैसला और वो वादा होता है , जो वह खुद से किया होता है ।
बात बिगड़ती है ” लाभ ” से नही , ” लालच ” से ( Greed ) जो व्यक्ति के जीवन की “प्राथमिकता “ बदल देती है । ” लालच ” व्यक्ति को खुदगर्ज बना देती है ,जिसके कारण व्यक्ति के जीवन से ” मानवीय पहलू ” सदा के लिए विदा हो जाते है ।
” जीवन “ भले ही छोटा हो , उसमे एक ” त्वरा ” हो , एक “दिव्य छटपटाहट ” हो अपने ” मक़सद ” के लिए पागलपन हो , उसके लिए मर मिटने का साहस हो , तभी “जिंदगी” को एक गरिमा , एक “अर्थ” एक ” perfection” मिलता है ,अन्यथा “जिंदगी ” एक अर्थहीन घटनाओं का श्रीखंला बन कर रह जाती है ।