18. तू और तेरी जुस्तजू

तुने कभी

अपने दिल पर हाथ रख कर

खुद से सवाल किया है ?

बता  “जिंदगी ” तुझे जाना कहा है ?

तेरी मंजिल क्या है ?

नही पूछा है तो एक बार पुछ

“जिंदगी ” इज़हार करती है  —-

अपनी ख्वाहिश े , अपने सपने  ,अपने इरादे ।

मुश्किल े

यही से शुरू होती हैं ,क्योंकि 

जिंदगी के चौराहे पर कोई ” ‌Finger  post “

नही होता ।

यहाँ  मंजिल और दिशा खुद तय करनी होती है ।

यही जिंदगी  के सपने को एक मजबूत इरादे की

जरूरत महसूस होती है ,

जो मुश्किल से मुश्किल घड़ी में अपने

सपने के साथ खडा होता है ।

शुरूआत मे

किसी को भी अपनी मंजिल का

मुकम्मल तसवीर क्या होगी ,

पता नही होता ?

जैसे जैसे  व्यक्ति आगे बड़ता जाता है ,

मंजिल की एक धूधली सी तसवीर उभरने लगती है ।

तेरा जोश और तेरा जुनून  ही 

एक दिन मंजिल को तेरे सामने खडा कर देता है ।

अक्सर जिंदगी के बन्द दरवाजे

खुद के हौसले की चाबी से ही खुले है ।

तू कभी ये सोच कर परेशान मत होना , कि

तू अपनी कतार मे सबसे पिछे खडा़ है।

तेरे पिछे भी एक लम्बी कतार है ।

तुछे अभी पता नही ,

जिन्दगी से बडी और लम्बी कोई कतार नहीं होती ।

बात लम्बी कतार की नही होती , बल्कि

सही दिशा ओर सही  रफ्तार और मजबूत

इरादे क साथ आगे बढते रहने की है ।

तेरा जुनून और तेरा पागलपन ही तेरी मंजिल

और तेरा मुस्तकबिल तय करेगा ।

मजरुह सुलतानपुरी के गीत के दो लाइने

याद आ रही है  :

“रुक जाना नही तू कही हार के 

काँटों पे चल कर मिलेगे साये बहार के “

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