तुम्हारी जिंदगी में यदि अब तक भटकाव है ,
तो इसके कारण क्या हैं ?
एक बार खुद से सवाल तो कर ।
तेरे हर सवाल का जबाब तेरे जिंदगी के पास है ।
तू पहले अपनी “प्राथमिकता ” तो तय कर ।
जीवन में यदि लक्ष्य ही सुनिश्चित न हो तो
जिंदगी मे भटकाव लाजमी है ।
तुझे जाना कहाँ है ?
पहले ये तो तय कर ।
मंजिल पर पहुँचने का ” रोड मैप “
जिंदगी खुद तैयार कर लेती है ।
जिंदगी के पाठशाला में पहला अध्याय
“प्राथमिकता ” का ही होता है ।
दूसरा अध्याय “संर्घष ” का और तीसरा
” जुनून” का और अन्तिम “सफलता “
का अध्याय जिंदगी खुद से ही लिख लेती है ।
जिंदगी किसी को भी खैरात में नही मिलती ,
कठिन और कठोर संर्घष के बाद ही
तू इस लोक में आ पाया है ।
तुझे इस अवसर का महत्व समझना होगा
और इसका जबाब तुझे अपनी कोशिश से नही,
यही तेरी जबाबदेही और जमाने को तेरा जबाब होगा ।
बल्कि कामयाबी से देनी होगी।
तेरा संर्घष और तेरी लडाई
जमाने से नही ,खुद से है ।
हम खुद अपनी जय और पराजय के लिए
जिम्मेदार है ।
अपने स्वर्ग और नरक का भी हम खुद
हकदार और गुनाहगार हैं और रहेगे ।
यहाँ आना – जाना , मरना – जीना लगा रहेगा ,
तू अपनी नजर अपने लक्ष्य पर स्थिर रख ,
हर उस सुख से तू अपने को दूर रख ,
जो तुझे तेरी मंजिल से दूर ले जाती है ।
यही तेरी जीवन की तपस्या होगी ।
जिंदगी को
जुल्फ के घने साए में नही ,बल्कि दिन के कडी
धूप मे तपने और सवरने देना होगा ।
कठोर अनुशासन मे ही जिंदगी अपने आत्म विश्वास
के शिखर पर होती है ।
फिर कामयाबी का पता ढूँढनी नही पडती
जिंदगी खुद ब खुद ढूँढ लेती है ।