15. एक निज व्यथा‌

हे प्रभू ,

 बडे़ संर्घषों के बाद हम

 इस धरा पर आये ।

 आपने हमे ं इन्सान का स्वरूप दिया ।

 सोचने और विचारने के लिये

 ज्ञान और विवेक जैसे टूल्स दिये ।

 श्रम और  पुरुषार्थ  के लिये

 दो बलशाली भुजाएँ दि ।

 सूरज , चाँद , धरती ,आकाश और 

 धने वन दिये ।

 प्रचूर  खनिज और सम्पदा दि आपने ।

  हम  फिर   अपने भाव और विचार‌ 

  में   इतना दरिद्र कैसे हो गये ?

 हम एक दूसरे के प्रति इतना निष्ठुर

 और निर्मम  कैसे हो गये ?

 इतनी हममें  दीनता  क्यों है  ?

Leave a comment