हे प्रभू ,
बडे़ संर्घषों के बाद हम
इस धरा पर आये ।
आपने हमे ं इन्सान का स्वरूप दिया ।
सोचने और विचारने के लिये
ज्ञान और विवेक जैसे टूल्स दिये ।
श्रम और पुरुषार्थ के लिये
दो बलशाली भुजाएँ दि ।
सूरज , चाँद , धरती ,आकाश और
धने वन दिये ।
प्रचूर खनिज और सम्पदा दि आपने ।
हम फिर अपने भाव और विचार
में इतना दरिद्र कैसे हो गये ?
हम एक दूसरे के प्रति इतना निष्ठुर
और निर्मम कैसे हो गये ?
इतनी हममें दीनता क्यों है ?