14. मन

” मन “

  तंरगित चेतना का नाम ही मन है ।

  हमारी चेतना पर विचारों का

  जो तंरग है ,उस अवस्था को ही “मन”

  कहते हैं ।

  “मन” और  “शरीर ” में 

   कोई मौलिक भेद नही होता ।

 ‌‌ ”  मन”  सुक्ष्म  “शरीर ” ‌है तो  “शरीर “

   स्थूल ” मन”  ।

   “मन “और  “चित”  की दो अवस्थाए‌ 

   होती है ं ।

   साधारणतः ” मन” हमेशा ही “विचार” की

   अवस्था  में  होता है , क्योंकि वासना के हवाओं 

    के कारण “मन” तरंगित होता रहता है ।

    दूसरी तरफ जैसे ही   “वासना” 

    विदा होती है ,

    हवाए बंद हो गई ,मन शान्त हो जाता है ।

    शान्त , शुन्य ,मौन  “मन” ही

   ” भाव – समाधि ” ‌ है  ।

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