” मन “
तंरगित चेतना का नाम ही मन है ।
हमारी चेतना पर विचारों का
जो तंरग है ,उस अवस्था को ही “मन”
कहते हैं ।
“मन” और “शरीर ” में
कोई मौलिक भेद नही होता ।
” मन” सुक्ष्म “शरीर ” है तो “शरीर “
स्थूल ” मन” ।
“मन “और “चित” की दो अवस्थाए
होती है ं ।
साधारणतः ” मन” हमेशा ही “विचार” की
अवस्था में होता है , क्योंकि वासना के हवाओं
के कारण “मन” तरंगित होता रहता है ।
दूसरी तरफ जैसे ही “वासना”
विदा होती है ,
हवाए बंद हो गई ,मन शान्त हो जाता है ।
शान्त , शुन्य ,मौन “मन” ही
” भाव – समाधि ” है ।