14. जिंदगी में जीत की भूख

” दरिया “

की धारा बनने के लिए पहली बूंद को

फना होना पड़ता है ।

छोटी लकीर के रुबरु एक बडी लकीर

खिंचनी पडती है ।

“जिंदगी “

अपने आप में कभी महान नही होती,

बल्कि उसके सरोकार और उसके लक्ष्य ,

उसके सपने और संर्घष ही जिंदगी को महान

और ‌‌Large बनाते है ।

इसलिए जिंदगी में जीत की भूख की दखल

होनी चाहिये।

जिंदगी में यदि लडने और जीत की आग न हो

तो जिंदगी धुँआ‌ ‌- धुँआ सी लगती है । 

ये आग ही जिंदगी और सपने  दोनो को सोने नही देते ।

परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत हो ,

तुझे अपनी जबाबदेही कबूल करनी होगी ।

तुझे अपने सपनों के साथ  आगे बढना होगा

तुझे अपने जय – पराजय के बिच ही ,

नियति को भी चुनौती देनी होगी

आज तू नियति के हाथ का एक निरीह और बेजुबान

खिलौना नही बल्कि अपने भाग्य का निर्माता है ।

आज तेरी सफलता तेरा चुनाव है न कि संयोग ।

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