जीवन संग्राम नही ,
यह यज्ञ है “जागरण “का ।
जहाँ हम अपने विचारों , वृतियों और
अपनी कमज़ोरीयों पर पैनी नजर रखते हैं ।
अपनी दृष्टि से अपने लक्ष्य को कभी ओझल
नही होने देते ।
हमारे जीवन में बहुत से भटकाव
आते है ं ,जहाँ अपने को स्थीर और दृढ़
रखना भी एक तपस्या है ।
अन्यथा एक कहावत है कि
“आये थे राम भजन को और
ओटन लगे कपास “
अक्सर यही होता है ।
हम अपनी छोटी छोटी उलझनों में उलझ कर
जीवन के बडे़ लक्ष्य से महरूम हो जाते हैं ।
यदि आप सजग और सावधान नहीं हैं ,
तो आपकी सारी उर्जा और मूल्यवान
समय निरर्थक कामो ं में नष्ट हो जाएंगे ।
अपनी दैनिक गतिविधियों पर बाँज की नजर
रखनी होती है ।
यह एक रूपान्तरण की प्रकिया होती है ,जहाँ
व्यक्ति को साधक की तरह जीना होता है ।
जीवन मुर्छा और संग्राम नही,
एक जागरण की गाथा है ।
क्योंकि जागरण के बिना हर संग्राम भी
लक्ष्यविहीन होता है ।