13. जीवन संग्राम नही जागरण है ।

जीवन संग्राम नही ,

यह यज्ञ है “जागरण “का ।

जहाँ हम अपने विचारों  , वृतियों  और

अपनी कमज़ोरीयों  पर  पैनी  नजर रखते हैं ।

अपनी दृष्टि से अपने लक्ष्य को कभी ओझल

नही होने देते ।

हमारे जीवन में बहुत से भटकाव 

आते है ं ,जहाँ अपने को स्थीर और दृढ़

रखना भी एक तपस्या है ।

अन्यथा एक कहावत है कि 

“आये थे राम भजन को और

ओटन लगे कपास “

अक्सर  यही होता है ।

हम अपनी छोटी छोटी उलझनों में उलझ कर

जीवन के बडे़ लक्ष्य से  महरूम  हो जाते हैं ।

यदि आप सजग और सावधान नहीं हैं ,

तो आपकी सारी उर्जा  और मूल्यवान

समय निरर्थक कामो ं में नष्ट हो जाएंगे ।

अपनी दैनिक गतिविधियों पर बाँज की नजर

रखनी होती है ।

यह एक रूपान्तरण की प्रकिया होती है ,जहाँ

व्यक्ति को साधक की तरह जीना होता है ।

जीवन मुर्छा और संग्राम नही,

एक जागरण की गाथा है ।

क्योंकि जागरण के बिना हर संग्राम भी

लक्ष्यविहीन होता है ।

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