एक व्यक्ति
अपनी जिन्दगी की बडी़ जंग
तो बाद में लड़ता है ।
पहले अपनी छोटी छोटी
कमजोरियो ं से उपर उठकर
अपनी हौसले का विस्तार करता है ।
अपने संकल्प को एक आकार देने की
कोशिश करता है ।
अपने आन्तरिक संर्घष को
विवेक से जोड़ता है और अपनी
कमजोरियो ं को कामयाबी में बदलने
की कोशिश करता है ।
वाह्य तो केवल परिणाम का
वाहक होता है ।
नि: सन्देह
जिन्दगी की चुनौतियां आन्तरिक हैं ,
जो बाहर से दिखती नहीं है ।
हर पल अपने आन्तरिक शत्रु से
सतर्क रहना होगा हमे ं ।
जो भटकाएगें ,
क्षणिक सुख के लिये
उत्तेजना से भर देगे ं और इन सब
का अन्त एक दुख:द पश्चाताप पर होगा ।
हमें अपने इन्दृियो का दास
नही ,मालिक बनना होगा ।
साहस और संकल्प से इनका
मुकाबला करना होगा ,
नि:सन्देह जिन्दगी की चुनौतियां आन्तरिक हैं ।
“जिन्दगी “हमारे आन्तरिक संर्घषों का ही
परिणाम होती है ।
“परिणाम “इस बात पर निर्भर करता है कि आप
अपने आन्तरिक चुनौतियों के लिए
भीतर से कितना तैयार हैं ?