11.हमारे सारे दुःख अपने ही विचारों की देन है I

दुःख और दर्द 

 कहाँ नहीं  है ?

 किसे नही है ?

 कौन इससे मुक्त है ?

 दुनिया की हम बात छोड़ दे ,

 भगवान बुद्ध  को भी

 इस पिड़ा और संताप से

 गुजरना पडा़  था ।

 उनहोने माना कि जीवन

 यदि है तो सुख – दुःख ,

 जीवन मरण रहेगे ।

 ज्ञान प्राप्ति के बाद 

 उनहोने पाया कि सारे सुख और दु:ख 

 हमारे विचारों के खेल है ं ।

 जैसे ही दुःख हमारे विचारों से बाहर होते है ं

 वैसेही दुःख भी विदा हो जाते हैं ।

उनहोने एक और बात कही कि 

ज्ञान उपलब्ध हो जाने के बाद  भी ,दुःख

विदा नहीं हो जाते ,केवल इनके प्रति

 हमारी नज़रिया बदल जाती है ।

 दुःख अब भी आते हैं , कुछ पल के लिये

 रूकते हैं और विदा हो जाते हैं ।

 अब इन दुःखो ं के अस्तित्व का

 जीवन में कोई प्रभाव  नही रह जाता ।

 हम निसंग ,

 एक द्रष्टा की तरह ,

 सब कुछ देखते रहते हैं ।

 सुख की तरह दुःख भी

 कुछ दिनों के मेहमान होते हैं ,

  वो भी विदा हो जाते हैं ।

  हम केवल साक्षी  बने रहते हैं ।

  अतः दुःख अस्तित्व से नहीं केवल

  विचारों से जुडे़ होते हैं ।

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