दुःख और दर्द
कहाँ नहीं है ?
किसे नही है ?
कौन इससे मुक्त है ?
दुनिया की हम बात छोड़ दे ,
भगवान बुद्ध को भी
इस पिड़ा और संताप से
गुजरना पडा़ था ।
उनहोने माना कि जीवन
यदि है तो सुख – दुःख ,
जीवन मरण रहेगे ।
ज्ञान प्राप्ति के बाद
उनहोने पाया कि सारे सुख और दु:ख
हमारे विचारों के खेल है ं ।
जैसे ही दुःख हमारे विचारों से बाहर होते है ं
वैसेही दुःख भी विदा हो जाते हैं ।
उनहोने एक और बात कही कि
ज्ञान उपलब्ध हो जाने के बाद भी ,दुःख
विदा नहीं हो जाते ,केवल इनके प्रति
हमारी नज़रिया बदल जाती है ।
दुःख अब भी आते हैं , कुछ पल के लिये
रूकते हैं और विदा हो जाते हैं ।
अब इन दुःखो ं के अस्तित्व का
जीवन में कोई प्रभाव नही रह जाता ।
हम निसंग ,
एक द्रष्टा की तरह ,
सब कुछ देखते रहते हैं ।
सुख की तरह दुःख भी
कुछ दिनों के मेहमान होते हैं ,
वो भी विदा हो जाते हैं ।
हम केवल साक्षी बने रहते हैं ।
अतः दुःख अस्तित्व से नहीं केवल
विचारों से जुडे़ होते हैं ।