10. शिव बनने के लिए ” विष – पान” करना होगा I

 तू अकेला अवश्य है 

 पर अनाथ नही है ।

 तू  अनभिज्ञ  है  पर अनजान नहीं है।

 तू नादान हो सकता है ,पर

 ना -समझ नही हो सकता ।

 तू  एक योद्धा है,

 संर्घष और संग्राम तेरी नियति है।

 सफलता और अ -सफलता जीवन में

 आएगी और जाएगी पर

 बिना पराक्रम के कभी पराजय

 स्वीकार मत करना ।

 स्वयं के प्रति निष्ठुर बन ,

 खुद पर  कभी कोई रहम मत करना

 परन्तु दूसरों के प्रति

 कभी बे- रहम मत होना ।

“सफलता”

 कुछ भी पा लेना या

 शोहरत और दौलत का अंबार खड़ा

 कर लेने का गुरूर नहीं होता , वह तो

 खुद को जान लेने का पुरस्कार होता है ।

 तू  दुनिया की फिक्र छोड़ ,

 खुद के लिये  अपना  एक पैमाना तय कर ।

 दुनिया के नजरों में

भले ही तू लायक नहीं , परन्तु

 अपनी  नज़र  में “नायक “बन ।

 “जिन्दगी”

  के अहम सवाल खुद ही

  हल करना होता है ।

  अपनी मंज़िल और अपनी भूमिका

  खुद तय कर  ,

  जिन्दगी का विज़न जितना बड़ा होगा ,

   संर्घष और संताप उतने ही विकट होगें ।

 ” उधार के सिंदूर ‌”

   से कोई “सुहागन” नही कहलाता ,

    न  ही ” उधार के  कोख”  में

    जिन्दगी सवॅर  पाती  है ।

    अपना बल और अपना  ही  

    शौर्य  हमेसा काम आया है ।

   संसार और समाज को

   “अमृत ” देने वाले को अक्सर 

   विष पिना पडा़ है ।

  ” शिव” बनना है तो ” विष पान “करना होगा ।

    “प्रोमेथियस ” को भी

     मनुष्य जाति के लिये देवताओ के यहाँ से

    ” अग्नि ‌”   चुराने की सजा़ भुगतनी पडी़ थी ,

     परन्तु  ये  दण्य नहीं पुण्य  है , पुरस्कार है ।

     यही जीवन की गरिमा और ऐश्वर्य है ।

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