तू अकेला अवश्य है
पर अनाथ नही है ।
तू अनभिज्ञ है पर अनजान नहीं है।
तू नादान हो सकता है ,पर
ना -समझ नही हो सकता ।
तू एक योद्धा है,
संर्घष और संग्राम तेरी नियति है।
सफलता और अ -सफलता जीवन में
आएगी और जाएगी पर
बिना पराक्रम के कभी पराजय
स्वीकार मत करना ।
स्वयं के प्रति निष्ठुर बन ,
खुद पर कभी कोई रहम मत करना
परन्तु दूसरों के प्रति
कभी बे- रहम मत होना ।
“सफलता”
कुछ भी पा लेना या
शोहरत और दौलत का अंबार खड़ा
कर लेने का गुरूर नहीं होता , वह तो
खुद को जान लेने का पुरस्कार होता है ।
तू दुनिया की फिक्र छोड़ ,
खुद के लिये अपना एक पैमाना तय कर ।
दुनिया के नजरों में
भले ही तू लायक नहीं , परन्तु
अपनी नज़र में “नायक “बन ।
“जिन्दगी”
के अहम सवाल खुद ही
हल करना होता है ।
अपनी मंज़िल और अपनी भूमिका
खुद तय कर ,
जिन्दगी का विज़न जितना बड़ा होगा ,
संर्घष और संताप उतने ही विकट होगें ।
” उधार के सिंदूर ”
से कोई “सुहागन” नही कहलाता ,
न ही ” उधार के कोख” में
जिन्दगी सवॅर पाती है ।
अपना बल और अपना ही
शौर्य हमेसा काम आया है ।
संसार और समाज को
“अमृत ” देने वाले को अक्सर
विष पिना पडा़ है ।
” शिव” बनना है तो ” विष पान “करना होगा ।
“प्रोमेथियस ” को भी
मनुष्य जाति के लिये देवताओ के यहाँ से
” अग्नि ” चुराने की सजा़ भुगतनी पडी़ थी ,
परन्तु ये दण्य नहीं पुण्य है , पुरस्कार है ।
यही जीवन की गरिमा और ऐश्वर्य है ।