“जिन्दगी के पैबन्द “

“जिन्दगी “

  में न अब मुहब्बत है

  और न ही इश्क़ ,

   न इजहार है न इन्कार ।   

   दूर दूर तक फैला केवल

   हवस का रेगिस्तान है ।

   रिश्ते अब जिन्दगी के पैबन्द

   बन गये हैं और बच्चे आँगन के

   फूल नही ं राशन कार्ड पर दर्ज

   एक संख्या भर है ।

   हर चेहरा नसीब के सहारे

  ”  इम्पलाईमेन्ट एक्सचेंज ” के

  दरवाजे पर दस्तक दे रहा है ‌।

  तमाम जिल्लत और जहालत के बाद ‌भी,

  हर नजर को एक अच्छी खबर ‌ का इन्तज़ार है ।

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